Sonia Jadhav

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बाबूजी का रेडियो

अरे प्रकाश चल का रहा है घर में....... इतने सारे मजदूर क्यों आ रखे हैं घर में?
कुछ नहीं बाबूजी, आपकी बहुरिया रेखा घर में रेनोवेशन(renovation) करवा रही है।

रेनोवेशन मतलब ?

घर की दीवारों के रंग, फर्नीचर, कुल मिलाकर घर का सारा नक्शा बदलवा रही है। कहती है अब तुम मैनेजर बन गए हो बड़ी कंपनी में, कब तक इस पुराने डिज़ाइन के घर में रहेंगे? घर तो बदल नहीं सकते, कम से कम इसका हुलिया तो बदल ही सकते हैं थोड़ा।

ठीक है बबुआ...... जैसी तुम लोगों की मर्ज़ी। वैसे भी बड़े लोगों के बड़े ठाठ......
मैं अपने कमरे में आ गया बुदबुदाते हुए...........वैसे भी मुझे पूछता कौन है।

चश्मा उतारकर रखा मेज पर और रेडियो लगा दिया। रेडियो पर गानें, नाटक और खबरें सुनना मुझे बेहद पसंद है। एक रेडियो ही तो मेरा साथी है अब......... प्रकाश की माँ तो 2 साल पहले ही स्वर्ग सिधार गयी। जब वो थी साथ में तो हम रोज़ रात को पुराने गाने सुनते थे लता-रफ़ी के और पुराने दिन याद किया करते थे। 
आज उसकी ही पसंद का गाना आ रहा है रेडियो पर, वाह! क्या बात है। रेडियो वाले भी ना जाने कैसे मन की बात समझ लेते हैं।

लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो ना हो, शायद फिर इस जन्म में मुलाकात हो ना हो .............. 
बहुत पसंद था मेरी बुढ़िया को यह गाना। जब भी यह गाना बजता था मेरा हाथ पकड़ लेती थी। कहती थी जब मैं चली जाऊंगी, तब तुम मुझे याद कर-करके रोओगे।

मैं कहता था.... धत पागल कहीं की, तू जायगी तो मैं भी तेरे पीछे-पीछे चला आऊंगा, चिंता मत कर। बस हम दोनों ऐसे ही हाथ पकड़कर सो जाते थे और रेडियो पूरी रात चलता रहता था।

टीवी देखना मुझे पसंद नहीं था। रेडियो में मेरी आत्मा बसती थी। वैसे भी प्रकाश और उसकी बहुरिया के पास समय ही कहाँ था मेरे लिए। ऑफिस से आने के बाद शाम को ड्यूटी देने आता था मेरे कमरे में, दवाई - पानी पूछ जाता था। लेकिन कुछ देर प्यार से बैठकर बात नहीं करता था, जिसके लिए मेरा मन तरसता था।

बहू भी तीन टाइम का खाना दे जाती थी कमरे में, वो भी अपनी ड्यूटी निभा रही थी। एक दिन बहू को कहते हुए सुना था प्रकाश से........ हम तो इतना भी कर रहे हैं बाबूजी के लिए...... आजकल के बहू-बेटे तो घर में रखते तक नहीं है, वृद्धाश्रम छोड़ आते हैं बूढ़े माँ-बाप को।
सही कह रही हो रेखा तुम..........

अपना ही सिक्का खोटा हो तो किसी और को दोष क्यों दे? 

वो तो शुक्र है भगवान का कि मेरी पेंशन आती थी हर महीने। मेरी दवाई का खर्चा निकल आता था वरना भगवान जाने क्या होता........

फौजी भाइयों का कार्यक्रम आ रहा होगा विविध भारती पर, ज़रा वो लगा लेता हूँ। मुझे बड़ा पसंद है यह कार्यक्रम।
गाना आ रहा था..... जिंदगी में गुज़र जाते हैं जो मुकाम वो फिर नहीं आते.....
आँखे बंद किये सुन रहा था कि तभी बहुरिया और प्रकाश आ गए।
बहुरिया बोली, बाबूजी आपने कमरे में बहुत फालतू सामान जमा कर रखा है, कमरा एकदम कबाड़ खाना लगता है। सोच रही हूँ क्यों ना फालतू सामान निकाल दें और यहाँ एक सुंदर सा कमरा बनवा दे मेहमानों के लिए।

तो मैं कहाँ रहूँगा बहू?
आपके लिए घर के पीछे वाली साइड पर कमरा डाल देंगे। वहाँ कोई आयेगा-जायगा नहीं और आपको कोई परेशानी भी नहीं होगी। और यह रेडियो भी बहुत पुराना हो चुका है, इतना गन्दा लगता है देखने में एकदम डिब्बा जैसे, इसे भी कबाड़ी वाले को दे दूंगी।

प्रकाश कह दी अपनी बीवी को...... गन्दा और पुराना तो मैं भी हो चुका हूँ.... 

मुझे भी फैंक देगी क्या? और रही बात कमरे की तो, मैं अपना कमरा नहीं बदलूंगा। यहीं मरूँगा इसी कमरे में अपने रेडियो के साथ। 

ये मेरे लिये महज़ एक रेडियो नहीं है। इसके साथ मेरी और तेरी माँ की यादें जुड़ी हुई हैं। शादी की पहली सालगिरह पर लाया था तेरी माँ के लिए क्योंकि तेरी माँ को गाने सुनने का बहुत शौक था। तेरी माँ के साथ गाने सुनते-सुनते मुझे भी रेडियो सुनने का शौक हो गया। ये रेडियो, इस पर हर बजने वाला गाना मुझे तेरी माँ की याद दिलाता है। जैसे तेरी माँ चली गयी, वैसे मैं भी चला जाऊंगा। तब फेंक देना ये रेडियो। लेकिन मेरे मरने से पहले नहीं।

मुझे माफ़ कर दीजिये बाबूजी। मैंने इस नजरिए से सोचा ही नहीं था। प्रकाश की आँखों में शर्म थी।
प्रकाश पागल हो गए हो तुम? बाबूजी तो सठिया गए हैं, लेकिन तुम्हारी अक्ल को क्या हो गया है?

रेखा चुप हो जाओ और सीधा कमरे में चलो। प्रकाश बहू को कमरे में लेकर चला गया। उनके कमरे से काफी देर तक लड़ने की आवाजें आती रहीं। प्रकाश ने कभी उसकी किसी बात का विरोध नहीं किया था, आज पहली बार किया था। जिससे वो बहुत चिढ़ गई थी।
मैं भी थक चुका था, मन बहुत दुखी था पर इस बात की ख़ुशी भी थी कि आज मेरे बेटे ने मेरी भावनाओं को समझा, उन्हें इज़्ज़त दी। रेडियो चलाया और सोने की तैयारी करने लगा।

मेरा मनपसन्द गाना आ रहा था..........

लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो ना हो, शायद फिर इस जन्म में मुलाकात हो ना हो .............. 
गाना सुनते ही नींद आ गयी मुझे। सपने में ऐसा लगा जैसे प्रकाश की माँ आयी हों मुझे अपने साथ ले जाने.........

क्या बात है बाबूजी अभी तक उठे नहीं, देखकर आता हूँ और यह रेडियो भी अभी तक चल रहा है, सुबह हो गयी है। देखकर आता हूँ कमरे में......

बाबूजी, बाबूजी..... अभी तक सोये हैं ......उठिये ना..... सुबह हो गयी है। बाबूजी, बाबूजी.......
बाबूजी की साँसे चल नहीं रही थी। वो जा चुके थे माँ के पास और उनका रेडियो अभी भी चल रहा था। गाना आ रहा था......
जिंदगी का सफर है यह कैसा सफर, कोई समझा नहीं, कोई जाना नहीं..........

बाबूजी के दाह संस्कार के बाद , उनका रेडियो में अपने कमरे में ले आया और रोज़ रात को सोते हुए सुनता हूँ।
मेरी माँ और बाबूजी का रेडियो अब मेरी जिंदगी का हिस्सा बन चुका है। चीज़े पुराने हो जाती हैं लेकिन यादें नहीं।

❤सोनिया जाधव
#लेखनी प्रतियोगिता


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6 Comments

Seema Priyadarshini sahay

28-Dec-2021 08:24 PM

बहुत ही खूबसूरत कहानी

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Shrishti pandey

28-Dec-2021 08:55 AM

Very beautifull

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Abhinav ji

27-Dec-2021 11:55 PM

बहुत ही बढ़िया

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